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यीशु मसीह के एक अन्य शिष्य सन्त बार्थलम्यू 55 ई. में आए थे भारत



 




 



प्राचीन ग्रन्थों में सन्त बार्थलम्यू के भारत सहित कई अन्य देशों में जाने की बात भी दर्ज

यीशु मसीह के 12 शिष्यों में से सन्त बार्थलम्यू भी एक थे और वह भी भारत आए थे। उन्हें नथानियेल के नाम से भी जाना जाता है। बार्थलम्यू (हिन्दी की बाईबल में उन्हें बर्तुलमै लिखा गया है) का जन्म गलील के काना नगर में हुआ था। यूहन्ना की इंजील (यूहन्ना 1ः43-51) में उनका वर्णन मिलता है, जब फिलिप उन्हें यीशु मसीह से पहली बार मिलवाते हैं। कैसरिया के क्लीसियाई इतिहास के रचयिता यूसेबियस ने लिखा है (5ः10) कि जब यीशु मसीही जीवित रूप में बादलों पर बैठ कर आसमान पर चले गए थे, तो बार्थलम्यू भारत गए थे और वहां पर वह मत्ती रचित सुसमाचार छोड़ आए थे। कुछ अन्य स्थानों पर उनके इथोपिया, मैसोपोटामिया, पार्थिया व लाइकोनिया में जाने की बात भी कही गई है। प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार भारत के पश्चात् बार्थलम्यू आरमीनिया गए थे।


बम्बई के कल्याण नगर में आए थे सन्त बार्थलम्यू

चौथी शताब्दी ईसवी के प्रारंभ में कैसरिया के यूसेबियस तथा उसी शताब्दी के अन्त में संत जेरोम दोनों ने लिखा है कि संत बार्थलम्यू भारत आए थे। फ़ादर एसी पेरूमालिल एसजे तथा मोरेस के अध्ययनों के अनुसार यीशु मसीह के शिष्य नथानियेल बार्थलम्यू भारत के कोंकण तटी क्षेत्र में बम्बई (अब मुंबई) क्षेत्र के समीप प्राचीन कल्याण नगर में आए थे। उनकी कुछ गतिविधियां वहीं पर हुईं थीं। 10 सितम्बर, 2017 को टाईम्स ऑफ़ इण्डिया में पणजी (गोवा) से प्रकाशित एक समाचार के अनुसार बार्थलम्यू सन 55 ई. में भारत के बंबई महानगर के समीप कल्याण नगर में आए थे। इसी समाचार के अनुसार तब वह गोवा भी गए थे।


पहली शताब्दी में आर्मीनिया में मसीहियत को पहली बार लेकर गए और वहीं पर शहीद हुए

बार्थलम्यू जब मसीहियत फैलाने हेतु आरमीनिया गए थे, तो उनके साथ यीशु के एक अन्य शिष्य यहूदा ‘थेडियस’ भी थे। उन्हें आर्मीनियन एपौस्टौलिक चर्च के संरक्षक संत भी समझा जाता है। अब तक की प्राप्त जानकारी अनुसार आर्मीनिया के अल्बानोपोलिस में बार्थलम्यू को 62 ई. में शहीद किया गया था। पहले उनके जीते जी उनकी खाल को शरीर से उधेड़ा गया तथा फिर उनका सर धड़ से अलग कर दिया गया। एक अन्य लिखित के अनुसार उन्हें संत पतरस की तरह सलीब पर उल्टा भी लटकाया गया था। उनके साथ ऐसा व्यवहार इस लिए किया गया था क्योंकि उन्होंने आर्मीनिया के राजा पौलीमियस को मसीही बनाया था। तब रोमन राजाओं की विरोधी व प्रतिक्रियात्मक कार्यवाही के डर से राजा पौलीमियस के भाइ्र शहज़ादा एस्टाइज्स ने बार्थलम्यू को मौत के घाट उतारने का आदेश दे दिया था। एक अन्य ऐतिहासिक लिखित में तो बार्थलम्यू की शहादत ‘भारत में बंबई के पास कल्याण’ में पौलीमियस नामक एक अधिकारी के हाथों हुई बताई गई है परन्तु समस्त विश्व में उनकी ‘आरमीनिया में शहादत’ को अधिक मान्यता प्राप्त है।

शहादत की ऐसी दर्दनाक प्रकृति के कारण बार्थलम्यू को जानवरों की खाल उतारने वाले, प्लास्टर्रस, दर्ज़ियों, चमड़े का कार्य करने वालों, जिल्दसाज़ों, किसानों, घरों में पेंट करने वालों, कसाईयों एवं दस्तानों के निर्माताओं का संरक्षक संत माना जाता है।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

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