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भारत के प्रथम रेल मंत्री व द्वितीय वित्त मंत्री डॉ. जॉन मथाई



 




 


नेहरू के साथ वैचारिक मतभेदों के कारण डॉ. मथाई ने दे दिया था त्याग-पत्र

डॉ. जॉन मथाई (1886-1959) स्वतंत्र भारत के पहले रेल मंत्री थे तथा वह देश के द्वितीय वित्त मंत्री भी थे। इसके अतिरिक्त वह संविधान तैयार करने वाली ‘निर्वाचक सभा’ (कॉनस्टीच्यूएन्ट असैम्बली) के छः मसीही सदस्यों में से एक थे। स्वतंत्र भारत का प्रथम बजट प्रस्तुत किए जाने के शीघ्रोपरान्त 1948 में उन्होंने वित्त मंत्री का पद संभाल लिया था। उनके प्रशंसक उन्हें एक ‘महानतम राष्ट्र-निर्माता’, ‘एक प्रगतिशील प्रजातंत्रीय’ और एक ‘शानदार तर्कशील’ कहा करते थे। उन्होंने संसद में देश के दो वार्षिक बजट पेश किए थे। परन्तु देश के प्रथम प्रधान मंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू के साथ उनके कुछ वैचारिक मतभेद हो गए थे, जिनके चलते उन्होंने वर्ष 1950 का बजट पेश करने के बाद अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया था। वास्तव में वह योजना आयोग तथा उसके सदस्य प्रशांत चन्द्र माहलनोबिस (जो एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक तथा आंकड़ा-शास्त्री थे, जिन्होंने 1936 में अपना ‘दूरी का सिद्धांत’ विश्व के समक्ष रखा था और जिसे आज भी अर्थ-शास्त्र विषय को पढ़ाते समय ‘माहलनोबिस सिद्धांत’ के नाम से बच्चों को पढ़ाया जाता है) की नित्य बढ़ रही शक्तियों को ठीक नहीं मानते थे। उन्होंने इसी के विरोध में त्याग-पत्र (अस्तीफ़ा) दिया था।


डॉ. जॉन मथाई ने करवाया भारत के रेल-क्षेत्र का पुनर्गठन

Dr. John Mathai श्री जॉन मथाई ने अपने कार्यकाल के दौरान भारत के रेल-क्षेत्र का पुनर्गठन किया था, क्योंकि उस क्षेत्र की स्थिति द्वितीय विश्व-युद्ध के कारण अत्यंत दयनीय हो चुकी थी और फिर शरारती अनसरों ने देश के विभाजन (स्वतंत्रता प्राप्ति) के समय बहुत से रेलवे स्टेशनों को आग लगा दी थी तथा स्टेशनों व रेल-पटरियों सहित बहुत सी तोड़-फोड़ की थी। इसी लिए जॉन मथाई को इस ओर अधिक ध्यान देना पड़ा था।

श्री जॉन मथाई ने युनिवर्सिटी ऑफ़ मद्रास से अर्थ-शास्त्र (इकनौमिक्स) विषय के साथ ग्रैजुएशन की थी। 1922 से लेकर 1925 तक वह युनिवर्सिटी ऑफ़ मद्रास में प्रोफ़ैसर एवं अपने विभाग के मुख्य भी रहे थे। वह 1955 में स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया की स्थापना के समय उस के पहले चेयरमैन रहे। वह नई दिल्ली स्थित ‘नैश्नल काऊँसिल ऑफ़ एप्लायड इकनौमिक रिसर्च’ (एन.सी.ए.ई.आर. - राष्ट्रीय व्यवहारिक आर्थिक अनुसंधान परिषद) की प्रशासनिक इकाई के संस्थापक अध्यक्ष भी रहे। यह परिषद 1956 में स्थापित हुई थी तथा यह भारत का पहला स्वतंत्र आर्थिक नीति संस्थान था।


डॉ. मथाई को पदम विभूषण से भी किया गया था सम्मानित

1955 से लेकर 1957 तक युनिवर्सिटी ऑफ़ मुंबई के वाईस-चांसलर (उप-कुलपति) रहे और फिर 1957 से लेकर 1959 तक युनिवर्सिटी ऑफ़ केरल के पहले उप-कुलपति रहे। उनके भतीजे श्री वर्ग़ीज़ कुरियन को भारत में ‘श्वेत क्रांति’ का पितामह माना जाता है। श्री जॉन मथाई के सुपुत्र रवि जे. मथाई अहमदाबाद स्थित प्रतिष्ठित इण्डियन इनस्टीच्यूट ऑफ़ मैनेजमैंट के संस्थापक निदेशक थे। उन्हें 1934 में ‘कम्पैनियन ऑफ़ दि ऑर्डर ऑफ़ दि इण्डियन एम्पायर’ नामक पुरुस्कार से सम्मानित भी किया गया था। 1959 में भारत सरकार द्वारा उन्हें पदम विभूषण से भी सम्मानित किया गया था। श्री जॉन मथाई के परिवार ने थ्रिसुर (केरल) में भूमि का बड़ा टुकड़ा दान किया हुआ है, जिस पर अब डॉ. जॉन मथाई सैन्टर स्थापित है।


आख़िर डॉ. मथाई को क्यों करना पड़ा था नेहरू के क्रोध का सामना

आम तौर पर यही माना जाता रहा है कि पण्डित नेहरू अत्यंत विनम्र इन्सान थे और अपनी आलोचना को भी अत्यंत प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया करते थे। परन्तु भारत की पहली कैबिनेट के सदस्यों अर्थात मंत्रियों तथा कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेताओं के साथ अनेकों बार उनके विवाद उत्पन्न हुए थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि श्री जॉन मथाई के साथ वह बिल्कुल भी विनम्र नहीं थे। ‘नेहरू-भक्ति’ के कारण ही अधिकतर इतिहासकारों ने कभी श्री जॉन मथाई का नाम लेना भी ठीक नहीं समझा। श्री मथाई ने क्योंकि योजना आयोग की बढ़ती जा रही शक्ति का विरोध किया था, इसी लिए उन्हें नेहरू के क्रोध का सामना करना पड़ा था और उन्हें अस्तीफ़ा देने पर विवश कर दिया गया। अपने त्याग पत्र के समय उन्होंने अपनी ओर से जारी एक प्रैस-विज्ञपित में कहा थाः ‘‘मेरा मानना है कि योजना आयोग न केवल ग़लत समय पर बनाया गया है, अपितु इसकी कार्य-शैली भी ठीक नहीं है। योजना आयोग एक समानांतर कैबिनेट बनने की ओर बढ़ता जा रहा है ....यह वित्त मंत्रालय के अधिकार को कमज़ोर करेगा तथा धीरे-धीरे कैबिनेट व्यवहारिक तौर पर केवल एक ‘रजिस्ट्रिंग अथॉर्टी’ बन कर रह जाएगी।’’

इसके अतिरिक्त नेहरू जिस ढंग से प्रशासनिक मामलों से निपटते थे, श्री जॉन मथाई को वह भी पसन्द नहीं था। इसी लिए जब भी कभी नेहरू को कभी किसी ने उनकी कोई कमज़ोरी को सामने लाने का प्रयत्न किया, नेहरू ने कथित तौर पर ‘‘निरंकुश एवं तानाशाही ढंग से उन्हें बरख़ास्त कर दिया’’ अथवा तत्काल शक्ति-विहीन करके रख दिया। डॉ. भीमराव अम्बेडकर एवं डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसकी उदाहरण हैं, जिन्हें नेहरू कैबिनेट से त्याग-पत्र देने पड़े थे।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



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