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1942 का ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन व भारत का मसीही समुदाय



 




 


लगभग सभी राष्ट्रीय मसीही संस्थाएं कूद पड़ी थीं ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में

पी. नल्लाथम्बी के पी-एच.डी. थीसिस में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ संबंधी कुछ जानकारी दी गई है कि - गांधी जी ने 8 अगस्त, 1942 को ‘करो या मरो’ का नारा दिया था और उसके अगले ही दिन इण्डियन नैश्नल कांग्रेस ने स्वतंत्रता आन्दोलनों संबंधी अपनी अंतिम ऐतिहासिक घोषणा की थी व इस संबंधी एक प्रस्ताव पारित किया था। गांधी जी का कहना था कि ‘बहुत हो गया, अब या तो भारत को स्वतंत्र करवाओ या फिर देश के लिए हंसते-हंसते जान दे दो।’ कांग्रेस ने ब्रिटिश शासकों से मांग की थी कि वे तुरन्त भारत को छोड़ कर चले जाएं। तब अंग्रेज़ सरकार ने कांग्रेस पर तत्काल प्रतिबन्द्ध लगा दिया था। ऐसी संकट की घड़ी में ‘ऑल इण्डिया कान्फ्ऱेंस ऑफ़ इण्डियन क्रिस्चियन्ज़’, ‘नैश्नल क्रिस्चियन काऊँसिल ऑफ़ इण्डिया’ जैसी मसीही संस्थायें व अभियान, मसीही नेता व ‘युनाईटिड थ्योलोजिकल कॉलेज’ (बंगलौर), सीरामपुर कॉलेज (बंगाल), ‘यूथ क्रिस्चियन्ज़ काऊँसिल ऑफ़ एक्शन’ (केरल) जैसे विद्यालयों व उच्च-विद्यालयों के मसीही विद्यार्थी समूह तथा स्टूडैन्ट क्रिस्चियन्ज़ मूवमैंट ऑफ़ इण्डिया सभी ने भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति के लक्ष्य को समर्पित कर दिया।


मसीही नेता जे.सी. कुमारअप्पा रहे ब्रिटिश सरकार को आईना दिखलाने में अग्रणी

JC Kumarappa ऐसे समय में प्रमुख मसीही नेता जे.सी. कुमारअप्पा ने गांधी जी के मैगज़ीन ‘यंग इण्डिया’ में ‘‘डज़ ए स्टोन रीप्लेस ब्रैड?’’ (क्या एक पत्थर कभी रोटी का स्थान ले सकता है?) नामक एक लेख लिखा। उस लेख को पढ़ कर ब्रिटिश शासक तिलमिला उठे। उसी लेख के आधार पर उनका ग्रिफ़्तारी वारण्ट जारी हो गया और उन्हें भी गांधी जी की तरह जेल जाना पड़ा। उस में उन्होंने लिखा था कि अंग्रेज़ शासक कैसे भारत के साथ-साथ अपने अन्य बस्तीवादी देशों को आर्थिक नुक्सान पहुंचा रहे हैं। श्री कुमारअप्पा ने अपनी एक पुस्तक ‘फ्ऱॉम क्लाईव टू केन्ज़’ (क्लाईव से लेकर केन्ज़ तक) उन्होंने स्पष्ट किया है कि इंग्लैण्ड के अंग्रेज़ शासकों ने कैसे आर्थिक नीतियां बनाई थीं कि जिनसे भारत और भारतियों का आर्थिक शोषण होना तय था। उनकी पुस्तक की शैली का एक नमूना देखिए - ‘‘क्लाईव लॉयड प्रारंभ में ईस्ट इण्डिया कंपनी में केवल एक क्लर्क बन कर आया था और भारत का वॉयसराय बन बैठा। वह जब सेवा-मुक्त होकर इंग्लैण्ड लौटा, तब वह तीन लाख पाऊण्ड स्टर्लिंग का मालिक था तथा उसकी संपत्ति प्रति वर्ष 27,000 पाऊण्ड स्टर्लिंग के हिसाब से बढ़ती रही थी।’’


एक सच्चे मसीही राष्ट्रवादी थे कुमारअप्पा

श्री कुमारअप्पा ने अपने स्वयं के जीवन से दर्शाया था कि एक अच्छा मसीही व्यक्ति एक सच्चा राष्ट्रवादी भी हो सकता है। वह गांधी जी के साथ साबरमती व सेवाग्राम आश्रमों में रहे थे तथा गांधी जी के अहिंसा व शांति के सिद्धांतों पर चलते रहे। उनका मानना था कि केवल पूर्ण स्वतंत्रता से ही भारत का भविष्य स्वर्णिम, बेहतर व उज्जवल हो सकता है।


गांधी जी की सलाह पर ब्रिटिश मिशन ने की थी कुमारअप्पा भाईयों से बात

1946 में एक ब्रिटिश कैबिनेट मिशन भारतीय नेताओं के साथ इस देश को सदा के लिए स्वतंत्र करने हेतु बातचीत करने के लिए भारत आया था। उस मिशन ने गांधी जी के साथ दो घन्टे तक बातचीत की थी। तभी गांधी जी ने उस ब्रिटिश मिशन को सलाह दी थी कि वे देश की कुछ प्रमुख आर्थिक व सामाजिक समस्याओं संबंधी कुछ अन्य नेताओं से भी बात करें। तब 23 जनवरी, 1946 को उस मिशन ने कुमारअप्पा भाईयों - जे.सी. कुमारअप्पा तथा भारतन कुमारअप्पा से लम्बा विचार-विमर्श किया था।


Mehtab-Ud-Din


-- -- मेहताब-उद-दीन

-- [MEHTAB-UD-DIN]



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