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भारतीय प्राचीन इतिहास के पितामह राबर्ट ब्रूस फुट



 




 


राबर्ट ब्रूस फुट ने ढूंढी थी प्राचीन पत्थर युग की एक कुल्हाड़ी

राबर्ट ब्रूस फुट (22 सितम्बर, 1834 - 29 दिसम्बर, 1912) को ’भारतीय प्राचीन इतिहास का पितामह’ कहा जाता है। उन्होंने भारत में पत्थर युग के कुछ अवशेष पहली बार ढूंढे थे। यूनान व यूरोप के अन्य देशों में ऐसी भूगोलिक अनुसंधान बहुत होने लगे थे परन्तु भारत में 1863 में पहली बार राबर्ट ब्रूस फुट ने ही मद्रास (अब चेन्नई) के पास पल्लवरम में प्राचीन पत्थर युग का एक औज़ार ‘हाथ से प्रयोग होने वाली कुल्हाड़ी’ ढूंढी थी। उससे पहले भारत में ऐसा कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ था - इसी लिए तब तक यही समझा जाता था कि मानवता सब से पहले यूनान, अफ्ऱीका या यूरोप में ही कहीं पर उत्पन्न हुई थी। तब प्राचीन इतिहास की बात करते हुए कभी भारत का ज़िक्र भी नहीं किया जाता था। परन्तु राबर्ट ब्रुस फ़ुट की खोज ने दुनिया के इतिहासकारों की पुरानी भ्रांतियां तोड़ कर रख दीं तथा भारत को भी प्राचीन सभ्यता का दर्जा दिलवाया।

वास्तव में हुआ ऐसे था कि 1858 में भारतीय भू-विज्ञान सर्वेक्षण के एक कर्मचारी हैनरी ज्योएगन जब त्रिची (तिरुचिरापल्ली) में कुछ चट्टानों का अध्ययन कर रहे थे, तब सख़्त गर्मी में लू लगने (सन-स्ट्रोक) से उनका निधन हो गया था, तब 24 वर्षीय राबर्ट ब्रूस फुट को उनके स्थान पर और भू-सर्वेक्षण करने हेतु बुलाया गया था। तब कौन जानता था कि वह स्वयं एक इतिहास रचने वाले हैं। ‘शर्मा सैन्टर फ़ार हैरिटेज फ़ाऊण्डेशन’ के शान्ति पप्पू ने राबर्ट ब्रूस फुट संबंधी व्यापक अनुसंधान किया है।


राबर्ट ब्रूस फुट के अनुसंधान से समस्त विश्व पहली बार हुआ था भारत की ओर आकर्षित

परन्तु राबर्ट ब्रूस फुट की खोज से सब का ध्यान भारत की ओर आकर्षित किया। उसके बाद ही भारत में भी प्राचीन सभ्यताओं की खोज होने लगी। ऐसा श्रेय निश्चित तौर पर विदेशी मसीही को जाता है - परन्तु आज कुछ संकीर्ण प्रकार की राजनीति के कारण ब्रिटिश काल के सभी अंग्रेज़ों को ही दुश्मन मान कर बात आगे बढ़ाई जाती है। अनेक विदेशियों का भारत में योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा है, जिन्हें आज ‘जानबूझ कर’ कभी याद भी नहीं किया जाता।


अंतिम श्वास भारत में लिया राबर्ट ब्रूस फुट ने

राबर्ट ब्रूस फुट ने चाहे जन्म भारत में नहीं लिया था (उनका जन्म इंग्लैण्ड के नगर शैल्टनहैम में हुआ था) परन्तु उन्होंने अन्तिम श्वास भारत में ही लिया था। ब्रिटिश भू एवं पुरातत्त्व वैज्ञानिक राबर्ट ब्रूस फुट ज्योलोजिकल सर्वे (भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण) के लिए कार्यरत रहे।

राबर्ट ब्रूस फुट ने भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई - ज्योलोजिकल सर्वे ऑफ़ इण्डिया) के लिए 29 दिसम्बर, 1858 को कार्य करना प्रारंभ किया था। प्रथमतया उनकी नियुक्ति मद्रास प्रैज़ीडैंसी, हैदराबाद क्षेत्र एवं बम्बई (अब मुंबई) में अनुसंधान के लिए हुई थी। सन् 1887 में वह जीएसआई के निदेशक बन गए थे तथा 1891 में वह सेवा-निवृत्त हो गए थे और उसके पश्चात् बड़ौदा रियासत में रहने लगे थे।


अनुसंधान हेतु ऐसे हुए थे राबर्ट ब्रूस फुट के हौसले बुलन्द

फिर कुछ समय के पश्चात् राबर्ट ब्रूस फुट तामिल नाडू के येरकौड चले गए थे, जहां उनके ससुर पादरी पीटर पर्काईवल कार्यरत थे। पत्थर युग हेतु अनुसंधान में उनकी अभिरुचि 1859 में जोसेफ़ प्रैस्टविच के कार्यों की प्रेरणा से हुई।

पल्लवरम में पत्थरयुगीन औज़ार ढूंढने के पश्चात् राबर्ट ब्रूस फुट के हौसले बुलन्द हो गए थे। तब उन्होंने विलियम किंग के साथ मिल कर दक्षिण एवं पश्चिम भारत में प्राचीन इतिहास के अन्य प्रमाण ढूंढने प्रारंभ कर दिए। फिर 1884 में राबर्ट ब्रूस फुट ने 3.5 किलोमीटर लम्बी बेलम गुफ़ाएं ढूंढीं, जो भारतीय उप-महाद्वीप में द्वितीय सब से बड़ी गुफ़ा है। बेलम गुफ़ाएं आंध्र प्रदेश राज्य के कुरनूल ज़िले की कोलीमिगुन्दला तहसील के गांव बेलम के समीप स्थित हैं। इन गुफ़ाओं में से 4,500 वर्ष पुराने बर्तन प्राप्त हुए थे। दो हज़ार वर्ष पूर्व इन्हीं गुफ़ाओं में बौद्ध व जैन भिक्षु निवास किया करते थे।


कलकत्ता में हुआ निधन, तामिल नाडू में दफ़नाया

राबर्ट ब्रूस फुट का निधन 29 दिसम्बर, 1912 को कलकत्ता में हुआ था। उन्हें तामिल नाडू के नगर येरकौड स्थित होली ट्रिनिटी चर्च में दफ़नाया गया था।

राबर्ट ब्रूस फुट 1867 में लन्दन स्थित ज्योलोजिकल सोसायटी के फ़ैलो बने थे तथा वह रॉयल ऐन्थ्रोपौलोजिकल इनस्टीच्यूट के भी फ़ैलो रहे थे। उन्होंने 40 वर्षों तक पश्चिम एवं दक्षिण भारत के विभिन्न भागों में प्राचीन ऐतिहासिक स्थान व वस्तुओं ढूंढने हेतु अनुसंधान किए।

उनके पौत्र मेजर जनरल हैनरी बाओरेमैन फुट थे, जिन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वीरता दिखलाने के लिए विक्टोरिया क्रॉस से सम्मनित किया गया था।


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